24 Dec 2009

मिदन कुमार कर्ण, बाबूबरही (मधुबनी) : तेघरा गांव में जेबरलाल दास और राजेश्र्वरी देवी के घर चार फरवरी, 1963 को जब गजेंद्र पैदा हुए तो सोहर की धुन पर समूचा गांव नाच उठा था। पर, खुशी ज्यादा दिनों तक नहीं टिक पाई। तीन साल की उम्र में ही गजेंद्र पोलियो के शिकार हुए और दोनों पैरों से विकलांग हो गए। फिर वह बालक उपहास व उपेक्षा का पात्र बन गया। अब यही बालक डा. गजेन्द्र नारायण कर्ण के नाम से देश के कोने-कोने में जाना जाता है। गांव-घर के लोग फूले नहीं समाते। डा. गजेन्द्र भारत सरकार की 11वीं पंचवर्षीय योजना में विकलांगों के सशक्तीकरण के लिए गठित 94 सदस्यीय कार्यदल के अध्यक्ष हैं। इसी कार्यदल की अनुशंसा पर केंद्र सरकार ने विकलांगों के राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों को बाधा मुक्त बनाने तथा प्राइवेट सेक्टर में एक लाख विकलांगों के लिए रोजगार सृजन का भी सरकार ने निर्णय लिया है। भारत में विकलांगता अध्ययन : मुद्दे और चुनौतियों विषयक अपने शोध में इन्होंने विकलांगता अध्ययन को एक अलग शैक्षणिक विषय के रूप में विकसित करने की वकालत की है। यही नहीं सोसाइटी फार डिसैबलिटी एंड रिहैबलिएशन स्टडीज के अध्यक्ष पूर्व राष्ट्रपति डा. कलाम तथा पत्रकार कुलदीप नैयर की मदद से इन्होंने केंद्रीय मानव संसाधन विकास विभाग द्वारा विकलांगता अध्ययन को वर्ष 2005 में एक अलग विषय के रूप में मान्यता दिलाई। इनकी पहल पर केंद्रीय विवि में विकलांगता अध्ययन में राजीव गांधी पीठ की स्थापना को मंजूरी मिल चुकी है। वहीं इग्नू, टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान मुंबई, अम्बेदकर विवि नई दिल्ली, पेरियार विवि आंध्रप्रदेश और गुवाहाटी विवि में शोध को बढ़ावा देने के लिए विकलांगता विषयक पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं। डा. कर्ण राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तथा समाज कल्याण विषय पर 11वीं पंचवर्षीय योजना की मध्यावधि समीक्षा के लिए गठित परामर्शी समिति के सदस्य भी बनाये गए हैं। जेएनयू में विकलांगता अध्ययन के विशेषज्ञ के रूप में लगातार शोध करते रहे डा. कर्ण को अपनी माटी से गहरा लगाव है। गांव आने पर हर दरवाजे पर दस्तक देकर लोगों का हालचाल जानते हैं। इनका इरादा है बाबूबरही प्रखंड को विकलांगों के लिए माडल बनाना।

22 Dec 2009

आंखों में रोशनी नहीं, पढ़ा रहे गणितविभा रानी, सीतामढ़ी : कल्पना कीजिए, आपके सामने बैठा एक अंधा इंसान भौतिकी और गणित के जटिल सवालों का धड़ाधड़ दे रहा हो जवाब। आपके हाथ में हो किसी नामचीन भौतिकी वैज्ञानिक की किताब और किसी भी अध्याय के बारे में पूछने पर पृष्ठ संख्या सहित बता दे जवाब, तो है न हैरत वाली बात? सीतामढ़ी जिले में एक ऐसे ही शिक्षक हैं- केसी चौधरी। चौधरी डुमरा स्थित इंटरस्तरीय स्कूल में भौतिकी पढ़ाते हैं। कृष्णानगर डुमरा के रहने वाले हैं। शिक्षा के प्रति पूरी तरह समर्पित। विकलांगों के लिए स्कूल खोलने का सपना भी देख रहे हैं। वह बच्चों को इस तरह पढ़ाते हैं जैसे साक्षात सरस्वती अवतरित हो गई हों। अनुभव इतना गहरा कि पूरा पाठयक्रम याद है। पहले दिन स्कूल आने वाले बच्चों के बीच श्री चौधरी आश्चर्य का कारण बनते रहे हैं, पर आगे चलकर बच्चे इन पर लट्टू हो जाते हैं। गणित और भौतिकी के फार्मूले जुबान पर रहते हैं। चौधरी मूल रूप से पुपरी प्रखंड केभिट्ठा धर्मपुर गांव के रहने वाले हैं। इनके पिता स्व. रामनंदन चौधरी भी शिक्षक थे। एक भाई रामचंद्र चौधरी पुपरी में हाईस्कूल के शिक्षक हैं। 26 सितंबर 1959 को पैदा हुए चौधरी ने मैट्रिक पुपरी के एलएम हाईस्कूल से किया। इंटर व स्नातक श्री राधा कृष्ण गोयनका कालेज से तथा एमएससी फिजिक्स बिहार यूनिवर्सिटी से की। स्नातक की पढ़ाई के दौरान ही उनके आंखों में परेशानी होने लगी। किताबों के बीच ज्यादा ध्यान लगाने से आंखों की रोशनी चली गई। काफी इलाज कराया। एम्स तक गए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आंखों में ग्लुकोमा नामक रोग हो गया और वह अंधी जिंदगी जीने को मजबूर हो गए। वर्ष 1984 से अंधेरी जिंदगी जी रहे हैं। इसके बाद ब्रेल लिपि की ओर कदम बढ़ाया। एक साल के प्रशिक्षण के लिए नेशनल इंस्टीच्यूट फार विजन देहरादून गए। इसी दौरान अप्रैल 1989 में उन्हें सीतामढ़ी इंटर स्कूल डुमरा में नियुक्ति के लिए बुलावा आया। उन्होंने प्रशिक्षण छोड़कर नौकरी कर ली। बीस वर्षो से वह इसी स्कूल में नियमित रूप से कार्यरत हैं। पत्‍‌नी कुशल गृहिणी हैं। एक पुत्र निशांत देहरादून में कानून की पढ़ाई कर रहा है। वहीं पुत्री सुगंधा बीएससी की पढ़ाई कर रही है। घर में ब्रेल लिपि के उपकरण भी हैं। रेडियो सुनने की आदत है। शिक्षा ज्ञान के लिए आडियो-सीडी भी सुनते हैं। ब्रेल लिपि के मैग्जीन उनके पास आते रहते हैं। हां, अखबार में छपी खबरों को जानने के लिए दूसरों की मदद जरूर लेते हैं। एक रिक्शाचालक उन्हें रोजाना घर से स्कूल पहुंचाता-लाता है। वर्ष 1998 में उन्होंने विकलांग विकास संस्थान की स्थापना की। इसके बाद बिहार शिक्षा परियोजना की मदद से विकलांगों को शिक्षित करने की मुहिम में जुट गये। शुरुआती दिनों में तो सबकुछ ठीक रहा, लेकिन बाद में मदद नहीं मिलने से मुहिम प्रभावित हो गया। वे चाहते हैं कि कोई जमीन दान करें ताकि अंधों के लिए स्कूल खोल सकें। इसके लिए वे राघोपुर व राजधानी पटना में सीएम के जनता दरबार में कई बार गुहार लगा चुके हैं। उनकी मानें तो जिले में फिलहाल 400 से अधिक नेत्रहीन बच्चे हैं। इनकी पहल पर मंत्री देवेश चंद ठाकुर व पूर्व मंत्री डा. रामचंद्र पूर्वे करीब सौ नेत्रहीन बच्चों को रेडियो सेट उपलब्ध करा चुके हैं। यही नहीं डा. पूर्वे की पहल पर ही इनके संगठन का निबंधन भी हुआ। आंखों में रोशनी..
केएसडीएस में वार्षिकोत्सव क्विज प्रतियोगिता आयोजितमुजफ्फरपुर, निप्र : कात्यायनी सिलिकान डाटा सिस्टम प्रा. लि. (केएसडीएस) की ओर से तृतीय वार्षिकोत्सव समारोह का आयोजन एक स्थानीय होटल में किया गया। समारोह का उद्घाटन कंपनी के वाणिज्य पदाधिकारी सुजीत कुमार ने दीप प्रज्जवलित कर किया। उन्होंने कहा कि आज कंप्यूटर हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण हो गया है। उन्होंने 2010 से संभावित वस्तु व सेवाकर (जीएसटी) के अतिरिक्त वैट आनलाइन फाइलिंग से संबंधित जानकारी दी। इस मौके पर आयोजित क्विज प्रतियोगिता के विजेता को गिफ्ट हैम्पर दिया गया व लक्की ड्रा के विजेता राजीव मेडिकल मुजफ्फरपुर को प्रथम पुरस्कार के रूप में टीएफटी मानीटर, कमला इंटरप्राइजेज दलसिंहसराय द्वितीय को डीवीडी प्लेयर व मेट्रोज मेडिकल तृतीय को नोकिया मोबाइल प्रदान किया गया। साथ ही पांच को सांत्वना पुरस्कार की घोषणा की गई जो अगले कार्यक्रम में दिया जाएगा। अंत में बिहार आइडियल के विपिन कुमार समेत कई कलाकारों ने गीत प्रस्तुत किये। समारोह में राजकीय पालिटेक्निक के प्राचार्य अंजनी कुमार मिश्रा व बीआरए बिहार विवि के अजय कुमार सिंह, विश्वनाथ प्रसाद व केके चौधरी, काजल, आंचल, पायल, आरूषि उपस्थित थे। अध्यक्षता बिहार संस्कार भारती संगठन मंत्री गणेश प्र. सिंह ने की जबकि संचालन मनीष कुमार ने किया।